आग़ाज
आग़ाज


मंजिल है तय
रास्ता है तय
है कौन सी शय
रास्ता जो रोके।
कदम बढ़ेंगे
बढ़ते ही जाएंगे
नई रवायत गढ़ते ही जाएंगे
पा ही लेंगे खुद को खो के।
मंजर काँटों भरा
पथरीला रास्ता ही सही
विरान-सुनसान राहों से
पड़ जाए वास्ता ही सही
हो जाए हालत खास्ता ही सही
ढूंढ लेगा मुझको मेरा मैं
न रहेंगे गुमनाम हो के।