छवी
छवी
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प्रेम दपर्ण में
जिसकी छवि
हरदम है हाबी
मन करे उसका गुणगान
जिसको नहीं इसका भान।
स्वप्न लोक हुआ कृतार्थ
संज्ञान कर जिसका चरितार्थ
जीवन के सार का अथार्त
जीवन का वो ही यथार्थ।
उत्सव का होगा वो क्षण
जब होगा दो मन का मिलन
तब ही मिलेगा जीवन में त्राण
अभी तो है तन मुर्छित समान।
