सपने
सपने


असलियत से अलग थे बिल्कुल मेरे सपने
पूरा कर पाऊँगा या नहीं बेचैनी रहती थी मन में।
पूरी - पूरी रात जगता रहा था मैं
सोने ना दिया इन सपनों ने मुझे।
बस एक ही ललक रही की चूम लू कदम
और पहुँच जाऊँ अपने उस सपने तक ।
क़िस्मत को मौक़ा ना दूँगा की हार जाऊँ मैं
अब तो नींद भी तब ही आएगी आँखो में
जब बुलंदियों को छू लू आसमान में ।
कर पाऊँगा हर सपने को पुरा अपने
बस ये रह-गुजर खड़ा हैं इसी इंतज़ार में॥