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Reena Tiwari

Abstract

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Reena Tiwari

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सपने

सपने

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असलियत से अलग थे बिल्कुल मेरे सपने

पूरा कर पाऊँगा या नहीं बेचैनी रहती थी मन में।

पूरी - पूरी रात  जगता रहा था  मैं

सोने ना दिया इन सपनों ने मुझे।

बस एक ही ललक रही की चूम लू कदम 

और पहुँच जाऊँ अपने उस सपने तक ।

क़िस्मत को मौक़ा ना दूँगा की हार जाऊँ मैं

अब तो नींद भी तब ही आएगी आँखो में

जब बुलंदियों को छू लू आसमान में ।

कर पाऊँगा हर सपने को पुरा अपने

बस ये रह-गुजर खड़ा हैं इसी इंतज़ार में॥


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