शाश्वत सत्य
शाश्वत सत्य


जीवन का प्रतिपल विशेष है।
जब तक हिय में नेह -लेश है।।
बादल कितनी कमर कसें पर,
लुप्त हुआ क्या कभी दिवाकर?
रात अमावस की छा जाती,
किन्तु पूर्णिमा छुप क्या पाती?
गहन कालिमा - हरण हेतु ही,
मन्दहास करता निशेश है।।
जब तक हिय में नेह - लेश है।।
जीवन का ••••
शब्दों की अपनी गरिमा है,
भावों की अनुपम महिमा है।
मृदु मंत्रों के पुष्पहार से,
अनघ हृदय सत शुभ विचार से।
प्राण - युक्त होती प्रतिमा भी,
नर ! नारायण तू महेश है।।
जब तक हिय में नेह- लेश है।।
जीवन का •••
अलख निरखते मर्महीन हैं,
कुछ अज्ञानी दग्ध - दीन हैं।
शूल लिये कटु तीक्ष्ण विषैले,
तज कर ममता हुए कसैले।
कर्म - कथन में जिनके अन्तर,
निस्पन्दन ही मात्र शेष है।।
जब तक हिय में नेह -लेश है।।
जीवन का ••••
जन्म-मरण का भय क्या करना,
क्या डरना क्यों किससे डरना?
विधि का अजब खेल है देखा,
पुण्य - पाप का अद्भुत लेखा।
जीवन - घट अनुराग - उदधि से,
कर अर्जन अक्षय निवेश है।।
जब तक हिय में नेह-लेश है।।
जीवन का ••••
वसुधा - वल्लभ वरुण - वृष्टि से,
हो प्रमुदित नभ- प्रणय- दृष्टि से।
सदा वर्तिका शलभ वरण कर,
दिव्य प्रीति देती हैै जलकर।
कृष्ण - राधिका 'अधर' बाँसुरी,
पूज्य प्रेम का अतुल वेश है।।
जब तक हिय में नेह-लेश है।।
जीवन का •••••