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archana nema

Abstract

2.5  

archana nema

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मेघ

मेघ

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380


तुम्हारे होठों पर बसा सांत्वना भरा स्पर्श,

तरसता यह अनछुआ मन;

बरसने को आतुर स्नेह,

दौड़ के भीग जाने को तरसता नेह;


कब आओगे बादल ? बरसने;

भिगोने मुझे नख शिख तक;

जिस मे धुल जाए मेरे सर्वत्र अवगुण,

और मैं ! उस बाढ़ में आप्लावित,

खुश, प्रसन्न, अपना सर्वस्व खो कर !


कच्ची फाँक सी खट्टी में,

जेठ की मिठास से उतरते मुझमे तुम !

रसवंती मेघ से तुम;

बरसते मुझ में।


मैं भीगती पोर-पोर,

रोम-रोम अंदर तक

तुम घनघोर पहुंच जाते,

मेरी अंतहीन रुक्षता की

हर सीमा तक।


तुम्हारे होठों के अंतिम किनारे तक

खिलखिलाती हँसी;

चहकती मेरे अंतस पर

किसी चिड़िया सी।


तुम्हारा खड़ा होना,

मेरे मन की चौखट पर

और मेरे इंतजार का बिखरना,

तुम्हारे पैरों के नीचे एक घर बनकर।


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