नव सृजन
नव सृजन
अतीत से परे का अब
नव सृजन, नव विचार है।
खिले नये स्वप्न, विस्तृत नव संसार है
पीछे क्या मुड़ना जब आगे पथ, पुनीत सा।
देख ! सजा प्यार, नयी प्रीत का, नई रीत का
गई बात पतझड़ की, पीर की, दुख नीर की
पुलक पुलक हर्षे मन सुवासित सी समीर सा।
अतीत से परे का अब
नव सृजन, नव विचार है।
खिले नये स्वप्न, विस्तृत नव संसार है
पीछे क्या मुड़ना जब आगे पथ, पुनीत सा।
देख ! सजा प्यार, नयी प्रीत का, नई रीत का
गई बात पतझड़ की, पीर की, दुख नीर की
पुलक पुलक हर्षे मन सुवासित सी समीर सा।