।। किस्त ।।
।। किस्त ।।


इन इच्छा और तमन्नाओं की ,
जाने कितनी ही है फ़ेहरिस्त ,
जीवन क्या,बस साँसों का सौदा ,
ता-उम्र यहाँ बस भरनी किस्त ।।
ज़र का कर्ज तो चुक भी जाये ,
जो बोझ आत्मा पर कोई आये ,
उस एक एक कर्ज चुकाने में ,
लग जाती जाने कितनी पुश्त ,
जीवन क्या बस साँसों का सौदा,
ता-उम्र यहाँ बस भरनी किस्त।।
कितने सूरज उदय हुए नित ,
कितनी किरणों के ख्वाब रचे ,
जो मुट्ठी में ली पकड़ रोशनी ,
दीपक दल में थे कोहराम मचे ,
मन के जुगनू भी दिखा राह ,
एक एक कर के हो रहे अस्त ,
जीवन क्या बस साँसों का सौदा,
ता-उम्र यहाँ बस भरनी किस्त।।
कुछ मन की की कुछ बेमानी ,
कुछ सूझ बूझ कुछ नादानी ,
कुछ जग के डर से मानी हैं ,
कुछ में अड़ कर आनाकानी ,
कुछ कर्ज़ तले हैं ये कांधे दबे ,
कुछ पी कर घी का प्याला मस्त ,
जीवन क्या बस साँसों का सौदा ,
ता-उम्र यहाँ बस भरनी किस्त।।
बचपन आशाओं का बोझ लिये ,
यौवन उम्मीदें नित रोज़ लिये ,
कभी पात्र तो कभी मैं दाता हूँ ,
कभी कोई और माइने खोज लिये ,
इस जीवन रण में आभा अपनी ,
ना चुनौतियाँ कर पाई निरस्त ,
जीवन क्या बस साँसों का सौदा ,
ता-उम्र यहाँ बस भरनी किस्त।।