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Dinesh paliwal

Action Inspirational

4.5  

Dinesh paliwal

Action Inspirational

।।  कंकड़ और पहाड़ ।।

।।  कंकड़ और पहाड़ ।।

1 min
414


कंकड़ निहारता पहाड़ को,

मंत्रमुग्ध निशब्द अचंभित,

रूप विराट चोटी नभ चुॅभी,

है गर्व लिये किन्चित ना दम्भित।


ऋतु कोई या हो काल कोई,

ये अडिग अचल अनथक एकाकी,

जंगल नदियाँ कन्दरा खग पशु,

हर कलरव में कितनी बेबाकी।


प्रहरी पोषक अनुपम स्तूप,

प्रकृति का ये है पित्र रूप,

सब कुछ हँस कर है सहता,

हो हिम वर्षा या निखरी सी धूप।


अभी सोच यही मन चलती थी,

कि पहाड़ की निगाह पड़ी उस पर,

हौले से गिर ने फिर पूछा,

क्यों हो इतने मोहित मुझ पर।


मैं बस तुमसा ही हूं तुमसे ही हूं,

मेरे हर कण अस्तित्व तुम्हीं हो,

सदियों सदियों कंकड़ कंकड़,

जो जुड़ता आया आकार वही हूं।


तुम में भी वो हैं सब क्षमता,

जिसे देख के तुम भरमाते हो,

मैं जो विराट ये रूप लिए,

कण कण, तुम ही तो लाते हो।


तुम ने ही तो खो अपनी पहचान,

ये पहचान मुझे अर्पित है की,

पहले ढेर फिर हुआ टीला,

फिर पर्वत की आन है हासिल की।


कंकड़ जब तक अकेला है,

जमाने को महज एक ढेला है,

वो ताकता बस विराटता औरों की,

हर भीड़ में जैसे वो अकेला है।


यही कंकड़ जो भुला अहम अपना,

थाम हाथ एक जब हो जाते,

गवाह धरती है, है साक्षी सूरज,

वो कंकड़ ही मिल हिमालय कहलाते,

वो कंकड़ ही मिल हिमालय कहलाते।।


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