जय महाराणा प्रताप
जय महाराणा प्रताप
राणा उदयसिंह , के सपूत,
थी , उनकी राजपूती शान ।
आओ ! मिलकर सब करें,
महाराणा प्रताप , का सम्मान ।
राणा प्रताप , का नाम सुनके,
दुश्मन , सारे घबराते थे ।
अकबर , तो सपने में डरता,
शेरों , से वो , दहाड़ते थे ।
छापली थी, मुगल छावनी,
दिवेर से, जीत की शुरुआत हुई ।
घोड़े समेत , बहलोल खाँ को चीरा,
वीर प्रताप की , जय जय कार हुई ।
कभी प्रताप , नही हारे थे,
थी , उनकी , अजेय तलवार ।
रणभूमि , में शेर बन जाते,
खाली नाजाता कोई वार
रण में , निकले वीर प्रताप,
नीले घोड़े , पर हो असवार ।
दो सो आठ किलो , वजनी थे,
भाला , कवच और तलवार ।
चेतक , हवा से बातें करता,
प्रताप , चलाये भाला, तलवार ।
दुश्मनों को , चीरते जा रहे,
दोनों हाथों , से करके वार ।
चेतक ने किये , प्रबल वार,
हाथी पर रख दिए , अपने टाप ।
महावत मरा , मानसिंह बचा,
वीरों के वीर थे , महाराणा प्रताप ।
अपने स्वामी , को बचाने,
कूद गया चेतक , नाले के पार ।
स्वाभिभक्त था , नीला घोडा,
नाले किनारे , त्यागा संसार ।
हल्दीघाटी , खून से लतपथ,
अकबर , को धूल चटायी थी ।
वन में , दर-दर भटके थे,
घास की रोटी , खायी थी ।
मेवाड़ के , वीर शिरोमणि,
सब प्रताप को , आदर्श मानते है ।
देशभक्ति की , मिसाल प्रताप,
भारत के बच्चे-बुड्ढे जानते है ।
"जसवंत" लिखे , प्रताप की गाथा,
सब मिलकर , गाये गुणगान ।
आओ ! मिलकर , और बढ़ाये,
महाराणा प्रताप , का मान ।