प्रेम और चाह
प्रेम और चाह
प्रेम क्या होता है मित्रों
आज सबको बताता हूँ ।
इतिहासो के पन्ने पलटकर
प्रेम के गीत गाता हूँ ।।
हीर-रांझा, लैला-मजनूं,
एक दूजे के दीवाने थे ।
पत्थर खाये थे फिर भी,
प्यार को पाके माने थे ।।
पहली नज़र में प्यार होता,
उम्र भर निभाते थे ।
चाहत में जीने-मरने की,
दोनो कसमें खाते थे ।।
प्यार में पागल दीवाने,
ताजमहल बनवाते थे ।
प्यार को पाने के खातिर,
सूली पे चढ़ जाते थे ।।
चाहत में सच्चे आशिक़,
इंतज़ार भी करते थे ।
प्रेम - परीक्षा देने को,
अंगारो पर भी चलते थे ।।
ऐसे भी मतवाले होते,
शीश काट कर देते थे ।
एक झलक पाने को,
समुन्दर पार कर देते थे ।।
प्रेमचाह अब खेल बने,
पहले जीवन होते थे ।
पल में रिश्ते टूटते,
पहले अटूट रिश्ते होते थे ।।
पहले दौर अलग था,
दो जिस्म एक जान होते थे ।
शिद्दत से मोहब्बत करते,
बड़े अरमान होते थे ।।
जहाँ सिर्फ प्यार होता था,
वो ज़माना चला गया ।
जिस्म की चाह है अब तो,
वो फ़साना चला गया ।।
प्यार नही मिलने पर लोग,
तेज़ाब फेंक देते है ।
ये क्या इतिहास दोहराएंगे ?
सबको चाहते रहते है ।।
"जसवंत" लिखे प्रेम-चाह,
सोच कर प्यारा इतिहास ।
निभाओ सच्ची मोहब्बत,
पाओगे प्यारा अहसास...।।