स्त्री
स्त्री
अपमान का हर घूँट पीकर,
तूफानों से भी ना डर कर,
मैं वो मजबूत शिला के जैसी हूँ
जो ना थकती हुँ ना डरती हूँ,
जिसमे हो जितना जोर लगा ले,
ना मुझको रोक पायेगा,
हर षड्यंत्र तोड़ कर रख दूँगी
जितनी चाहो उतनी रच लो,
मेरा लक्ष्य मुझे प्राप्त करने से
कोई ना मुझको रोक पायेगा।
जानती हूँ स्त्री हूँ
हर कदम परीक्षा देनी है।
इतिहास पलटकर रख दूँगी
मैं वो जज्बा भी रखती हूं।
