STORYMIRROR

SIJI GOPAL

Abstract

3  

SIJI GOPAL

Abstract

जिंदगी खेल नहीं एक पाठशाला है

जिंदगी खेल नहीं एक पाठशाला है

1 min
266

जिंदगी खेल नहीं एक पाठशाला हैं,

जहाँ मिलता आत्मज्ञान का उजाला हैं।

उम्र सी बढ़ती कक्षा, अनुभव की माला हैं,

बस्तों में जिम्मेदारी का बोझ निराला है।


किताबों ने रिश्तेदारी निभाई,

शिक्षकों ने नई राह दिखाई।

खेलमैदानों ने बल का पालन‌ किया,

परिक्षाओं ने मन का आंकलन लिया।


कापी में एहसास दर्ज है हजार,

पैन्सिल से रचाया नया सा प्यार।

जीवनगणित की पहेली को हिम्मत से बूझा,

इस सफर में अनुशासन का महत्व समझा।


प्रगति की प्रयोगशाला में कभी जागे, कभी सोये भी

दोस्तों की टोली में कभी खिलखिलाये, कभी रोये भी,

रबर से गलतियां को मिटाकर सुधारना सिखा,

फलक पर मंजिलों को रखकर मुस्कराना देखा।


इस शरीर के चलन‌ को पढ़ना सिखा,

इन्द्रियों को अपने‌ काबू में रखना सिखा।

मन की कहानी को पन्नों में लिखना सिखा,

बुद्धि ने उच्चतम डगर में चढ़ना सिखा।


जिंदगी खेल नहीं एक पाठशाला है,

जहाँ मिलता आत्मज्ञान का उजाला है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract