कुछ कच्चे लम्हें जिंदगी के
कुछ कच्चे लम्हें जिंदगी के


कच्चे रंगों से मैंने बचपन की दोस्ती सजाई थी,
सोचा, जिंदगी की दौड़ में वो कहां याद आएंगे?
उन रंगों ने भी यारों जैसे ही रिश्ता निभाया है,
हर मुश्किल वक्त में उन्हें ही मैंने साथ पाया है।
कच्चे धागों से मैंने राखी की डोर बांधी थी,
सोचा, मुँहबोले भाई कहां फिर मिलने आएंगे?
उन धागों ने भी रक्षा का वो फर्ज़ निभाया है,
सुनसान राहों में भी मैंने अनजान रक्षक पाया है।
कच्चे मिट्टी से मैंने वो प्रेम की मूरत बनाई थी,
सोचा, नादान प्रीत कहां मिलन गीत रोज़ गाएंगे?
उस मिट्टी ने इश्क का हर वादा निभाया हैं,
मेरे इंतजार में हर पल एक नया सपना सजाया है।