वेदना
वेदना
टीस गहरी जब हुई हमारी,
लेखनी तब और मुखर हुई।
वेदना जब जब उठी तो,
कविता सज सँवर कर निखरी।
वेदना से मन हुआ व्यथित जब
भावना मन की प्रबल हुई।
अर्थ खोते शब्द सारे,
बनकर कविता वह प्रगट हुई।
वेदना से उत्पन्न कविता
हर हृदय के तार छूती।
आह से वाह तक सफर कर
जोड़ती जो सम्बल है टूटी।
आँसुओं की अप्रतिम स्याही,
भावनाओं के रस छंद लय से
सिक्त कर हर शब्द को
सुप्त हृदय को जागृत करती।
वेदना का घना कोहरा,
काव्य की पुनीत वर्षा में।
शब्द है अप्रतिम गढ़ती,
काव्य का नूतन शृंगार करती।
