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Ruchika Rai

Abstract

4  

Ruchika Rai

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प्रेम की फुहार

प्रेम की फुहार

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थके हारे वजूद में ताजगी भर जाती है,

ये प्रेम की फुहार जिंदगी में जब पड़ जाती है।


आशा निराशा के बीच जब झूलता है मन,

एक हूक सी उठती है तब तन-बदन,

नाउम्मीदी के घने गह्वर में जब राहें धूमिल होती 

ये प्रेम की फुहार भर देती है मन उमंग।


मॉं जब प्रेम से बालों को सहलाती है,

पिता का सिर पर हाथ आश्वस्त कर जाती है,

मित्र के साथ जब होती है मीठी चुहल,

भाई बहन संग तकरार में भी जिंदगी सँवर जाती है।


तपते रेगिस्तान सा जब जीवन का ताप सहता तन,

बंजर भूमि सा उत्साहविहीन हो जाता है मन,

परवाह और फिक्र संग तब प्यार कोई जता जाता है

मध्दम सी टीस देती है जीवन में काँटों भरी जीवन।


प्रेम की फुहार उम्मीद के कोंपल मन में खिलाती है,

हारे थके वजूद में उत्साह पल्लवित कर जाती है,

हर तरफ रौनकें बहार सी दिखाई पड़ने लगती,

जिंदगी में हरियाली सी फिर छा जाती है।


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