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Rinki Raut

Abstract Inspirational

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Rinki Raut

Abstract Inspirational

कभी सोचा है

कभी सोचा है

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क्यों आग से खेलते है?

जब हाथ को जलना ही है

क्यों हम किसी के आगे -पीछे घूमते है?

जब अकेले ही सफर में है

क्यों हम दर्द को सहते हुए भी किसी

के साथ रहने चाहे

जब पता है की दूसरों में ख़ुशी देखना

बेमानी ही है।


दिन में परछाई क्यों ढूँढ़ते हो ?

जब रात में साया भी घूम है

पुराने रास्तों के साथ -साथ

चलना ही क्यों है ?

जब पता है की वो, पुराने

मंज़िल तक ही लेकर जाते है।


कभी सोचा है क्या ?

तुम्हारी सोच भी अपनी है क्या?

जो तुम देख रहो हो खुली आँखों से

हकीकत और धोके में फर्क

देखते हो क्या ?

क्यों सब जैसा बनाना है

अपने जैसा बनाना बुरा है क्या ?


पिंजरा उम्मीदों का है

सपनों को खोना का है

अकेले होने का है।

सोचा कभी है क्या,

यही सच है क्या?


क्या कभी अपने पंख देखा है?

उड़ते हुए महसूस किया है

कभी खुद को भी तलाशा है?

अपने भीतर भी कभी झाँका है क्या?

सोचा कभी है क्या,

यही सच है क्या?



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