पतंग बिना डोर की
पतंग बिना डोर की
वो जो समझते है की ?
उनकी मन मर्ज़ी चल रही है।
वो जी रहे है हवा की तरह
ज़रा रुक कर देखे !
वो बस पतंग है।
हवा पे सवार
डोर किसी और के पास
तू वही है।
जो सोचता है अपने सपने में।
अपने सपने में तू तितली
बन उड़ता है।
वो तुझे पतंग समझ
उड़ाते है।
भरा है तुझ में मांझा
किया धार -धार
काटे दूसरों के पतंग को
ये उनका सपना
तू बस है हथियार
तू वही है।
जो सोचता है अपने सपने में।
टूट जाना बचपन के सपनों का
बिना किसी शोर के
दफ़न हो गए सब
ज़रूरतों के कब्र में
रात में कभी मिलने आते है वो
धीरे से कहते है।
या तो अपने सपने को जी
या सपने में ही जी
न काट बन पतंग
दूसरे के सपनों को
तू डाल अपना समर्पण
अपने सपनों में
तू वही है।
जो सोचता है अपने सपने में।