इंक़लाब ज़िंदाबाद
इंक़लाब ज़िंदाबाद
अपनी कुर्बानियों के सदके जो हमारे मुल्क़ को करा गए आज़ाद,
कभी उन भूले बिसरे इंक़लाबियों को भी कर लिया करो याद,
मैं अपने खुदा से रोज करता हूँ, बस यही एक फ़रियाद,
कि मेरे मुल्क़ में फिर से पैदा हों गाँधी, भगत, और आज़ाद।
इंकलाब जिंदाबाद !
आम आदमी को जकड़े खड़ी है-भ्रष्टाचार और मंहगाई की ज़ंजीरे,
हुक़्मरानों ने सियासत के मार्फ़त बदल दी- मज़हब की तस्वीरें
वोट बैंक की ख़ातिर शहीदों के नाम पर भी की जाती है छींटा-कसी
हमारी तरक्की से घबराकर,यहाँ रोज कराए जाते हैं दंगे औ` फ़साद।
इंकलाब जिंदाबाद !
किताबों और खिलौनों की जगह हाथों में हैं जूठे कप-प्लेटे,
बेईमानी का दीमक चाट गया, स्कूलों से फ़र्नीचर, किताबें और स्लेटे
नशे और बुरी आदतों में फँस कर रह गई अपनी जवाँ पीढ़ी
कुछ लालची लोग हमारी नस्लों को दिन-ब-दिन कर रहे बर्बाद।
इंकलाब जिंदाबाद !
हमारी सुरक्षा की ख़ातिर सरहद पर डटे हुए हैं जो दिन रात,
मज़लूमों को इंसाफ़ दिलाने को हमेशा खड़े रहते उनके साथ,
खुदा हमें भी बक्शे इतना हौंसला और जिस्मों में जान,
कि दुश्मन की गोली के आगे हम भी खड़े हो जाएँ बनकर फ़ौलाद।
इंकलाब जिंदाबाद !
साथियों ! कस लो बंद मुट्ठियाँ, बुलंद कर लो बेखौफ़ आवाज़ें,
अपनी कोशिशों से ही खुलेंगे,मुल्क़ की तरक्की के बंद दरवाज़े,
अबकी दफ़ा हमारा जुनूँ देखकर दुश्मन यकीनन डर जाएगा,
ज़रूरत पड़ी तो अपने लहू से सींचकर इस गुलशन को करेंगे आबाद।
इंकलाब जिंदाबाद !
अंधेरों में गुम होने को है अपनी तमीज़ो-तहजीब का बावजूद,
उन सोये सरफ़रोशियों को जगाओ जो हमारे भीतर है मौजूद,
यूँ तो `दीप की कोशिशें जारी हैं,पर ना जाने कब बुझ जाएँ,
पर है यकीं एक चमकता सूरज निकलेगा इस काली रात के बाद।
इंकलाब जिंदाबाद !
अपनी कुर्बानियों के सदके जो हमारे मुल्क़ को करा गए आज़ाद,
कभी उन भूले बिसरे इंक़लाबियों को भी कर लिया करो याद,
मैं अपने खुदा से रोज करता हूँ, बस यही एक फ़रियाद,
कि मेरे मुल्क़ में फिर से पैदा हों गाँधी, भगत, और आज़ाद।
इंकलाब जिंदाबाद !