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मज़दूर

मज़दूर

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मज़दूर मज़दूर सब कहें, बनना चाहे न कोए 

पर मज़दूर बिन संसार में, काम न कोई होए।

 

मज़दूर ही संसार में रहता मज़े से दूर 

औरों को सुख मिले यही उसका गरूर।


सुबह शाम का जुगाड़ नहीं, रहता फिर भी मस्त

थोड़े से पैसों के लिए काम कर, हो जाता पस्त।


महल अटारी हमारी बनाता, खुद के लिए न छत

ज़मीन पर ही सो जाने का उसका शरीर अभ्यस्त।


जहाँ भी जाता करता दिलों जान से काम

बस इक आशा लिए मिले उसे भी सम्मान।


बस, इक दुख जिंदगी भर उसको रहता खाता 

गर कुछ पढ़ जाता तो परिवार को सुखी रख पाता।


अब उसने यह ठाना है, बच्चों को जरूर पढ़ाना है

इज्ज़त की रोटी कमा सके ऐसा उन्हें बनाना है।


दोस्तों, मज़दूरी उसको देकर कर सकते पूरा उसका सपना 

उसको भी अधिकार जीने का जो पूरा करते हमारा सपना।



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