पंडित जसराज
पंडित जसराज
जसराज... रस राज हुए
आया जो "ख़याल""तो पाया फैले हैं तीन सप्तक तलक,
तीन सप्तक तक ...सात द्वीपों तक,
बसाया है शास्त्रीय संगीत कण कण में
जन जन के रोम रोम में।
छुआ है हर मन का कोना
जो अपनाया मधु को तो मधुराज हुई
जस मधुराज से "दुर्गा"जसराज हुई
और हुए "सारंग" जसराज ।
जो आपने छुआ जुगलबंदी को
तो "मूर्छना" रसरंगी हुई
जसराज.. रसराज हुए,
मिलकर मधुरा से मधुराज हुए...रसराज हुए।
"वादा है तुमसे यह वादा"..यही कह मधुराज हुए
श्री,भूषण,विभूषण से विभूषित हो रसराज हुए,
जसराज... रसराज हुए।