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Anita Choudhary

Tragedy

4.2  

Anita Choudhary

Tragedy

स्तब्ध हूँ मैं

स्तब्ध हूँ मैं

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स्तब्ध हूँ मैं

क्यों ? ये कौन पूछे

आप होते तो अवश्य पूछते कारण

करते निदान, देते सांत्वना

क्योंकि आप ही मुझे समझते थे

दूसरे किसी से ये उम्मीद नहीं।


जाने से पहले भी एक बार 

हमारे बारे में सोचा होता

जैसा हमेशा सोचा करते थे

हल होता था आपके पास हर समस्या का

न भी होता होगा लेकिन आभास न होने देते।


निश्छल प्रेम, निस्वार्थ भाव से 

सबको समझा करते थे

अब कौन सुनेगा मन की बात

कौन करेगा इंतजा़र 

आने की खबर मात्र से

ढाणी की गली के नुक्कड़ पर

टकटकी लगाऐ घंटों इंतजार।


बच्चों की एक झलक पाकर

चमक उठती थी आपकी आंखें

स्तब्ध हूँ मैं

ऐसे कैसे नजरें फेर ली

कैसे चले गये इतनी बेरुखी से

घर के हर दरवाजे़ की आहट पर

नज़रें केवल आपको तलाश करती हैं।


फोन की हर घंटी पर इंतजा़र

आपके नाम का लेकिन

कभी जो नाम दर्ज था फोन में

वो अब केवल एक नम्बर है

स्तब्ध हूँ मैं

एक शून्य है।


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