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Anita Choudhary

Abstract Others

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Anita Choudhary

Abstract Others

एक मुलाकात

एक मुलाकात

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आओ आज हम अपनी बात कर लें

कल नहीं परसों नहीं आज की आज कर लें


उतार फेंके ये पत्नी, माँ, बहन, भाभी, बहू का लबादा इस पल के लिए

अपने अन्दर की उस लड़की से बात कर लें


लड़की जो मचल जाती थी सवेरे जल्दी न उठने के लिए

और जिद लडा़ बैठती थी भरी ठंड में कुल्फी खाने के लिए


मन चाहे कपडे़ पहनने को भी तो मचल जाती थी माँ के सामने

और मचल जाती थी कि सहेली के घर पार्टी में जाने के लिए


रो पड़ती थी जब रेडियो सुनने को मना कर दिया जाता था

रात को देर तक मुहल्ले के सभी बच्चों के साथ खो खो खेलने के लिए भी तो

बाबा को मना ही लेती थी

कंचे, गिल्ली-डंडा, गीटियां बहुत भाते थे

जब माँ दोपहर में सो जाती थी

क्या कारण था कि तब जेठ की गर्मी भी नहीं सताती थी

दस पैसे की संतरे वाली गोली गला व दिल दोनों तर कर जाती थी

साथ ही साथ दोस्तों में राजसी रुआब भी जमा जाती थी


माँ दुकान से सामान लाने को कहती तो बांछें खिल जाती थी

हमें बेधड़क साईकिल चलाने को जो मिल जाती थी

फिर दुकान तक पंहुचने का सबसे लम्बा रास्ता चुना जाता था...

साईकिल चलाने में मजा जो आता था


न कोई बंधन, न डर, न लड़की होने का आभास

सारे के सारे रास्ते मानो अपने ही हुआ करते थे

चाचा, बाबा, अंकल, भैया यही तो वहां बसा करते थे


आओ इक बार फिर से उस बचपन में एक गोता लगा आऐं

तो अपने बच्चों, पोते-पोतियों को भी वो दुनिया दिखलाऐं

दिखलाऐं कि कैसा सुन्दर वातावरण हुआ करता था

जहाँ कोई पराया नहीं सब अपना ही हुआ करता था


आओ आज हम अपनी बात करें...

खुद ही खुद से मुलाकात करें...

कि जीना क्यों भूल गईं हैं हम

तो आओ अपनी बात करें...

जिऐं अपने शौक को


एक बार फिर से पंख दे अपने अरमानो को

भरनें दें परवाज़ उन्हें... लो महसूस करलें इस खुशी को

तो आओ अपनी बात करें...

आज अभी फिलहाल करें


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