कपड़ों जैसे होते हैं रिश्ते
कपड़ों जैसे होते हैं रिश्ते
अक्सर कपड़ों जैसे
होते हैं रिश्ते
कुछ वक़्त की गर्द से
हो जाते हैं मैले।
नए नए के ढेर में
कुछ पुराने दब जाते हैं
बंद रह जाते अलमारी में
कुछ हो जाते तार तार।
घिस जाते हैं धीमे धीमे
कुछ में रफ़ू लग जाते हैं
कुछ यूँ ही फ़िक जाते हैं
पैबंद लगा कर कुछ
चलते रहते हैं।
कुछ नित धुल धुल कर
उजले हो जाते हैं
अक्सर कपड़ों जैसे
होते है रिश्ते।
लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं
जो बदन पर खाल के जैसे
हमेशा को रह जाते हैं !