ख़्वाहिश...
ख़्वाहिश...
ख़्वाहिश …
कुछ देर पहन लो आवाज़ मेरी
अपने कानों में
मेरे सुकून का गहना समझ कर !
कुछ देर थाम लो हाथ मेरा
अपने हाथ में
मेरी लड़खड़ाती रूह का सहारा बन कर!
कुछ देर बात करो
बैठ कर साथ
मेरी खामोशियों को अपने अल्फ़ाज़ बना कर !
कुछ देर साथ चलो
यूँ ही मेरे
मेरे तनहा रास्तों पर मेरे हमराही बन कर !
कुछ लम्हे ज़िंदगी से
दे दो मुझे
हक़ न सही …… चलो एहसान समझ कर !