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आनंद कुमार

Abstract

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आनंद कुमार

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जिंदगी और हम

जिंदगी और हम

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ना संधि है,ना विच्छेद है,

है मनमुटाव, इसलिए मतभेद है।


आंखों का दरिया सूख गया है जिनके इंतजार में,

वो कहते हैं रूकावट के लिए खेद है।


है आजादी सबको मन मर्जी जीने की,

फिर भी आत्मा ना जाने किस पिंजरे मे कैद है।


तबियत से पत्थर उछालो तो सही,

दैखो शायद आसमां में छेद है।


किस्मत बन्द है मेहनत के किले में,कोशिश करो, 

क्योंकि किले की सुरक्षा नहीं अभेद है। 

                 

कानाफूसी थोडा धीमें-धीमे करें,

क्योंकि दीवारो के कानो से खुल जाते सारे भेद है।


कौए को बेशक हंस बना दो,

मगर ध्यान रखो, हंस का रंग सफेद है।


              


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