मैं किताब हूं
मैं किताब हूं
मैं किताब हूं,
मुझे पढ़ना आसान नहीं है।
मैं कहानी हूं,
मुझे गढना आसान नहीं है।
मैं एक रवानी हूं,
मेरे साथ चलना आसान नहीं है।
मैं एक जिंदगानी हूं,
मुझसे मिलना आसान नहीं है।
मगर फिर भी,अगर तुम्हें साथ चलना है,
तो चलों। क्योंकि चुनना तुम्हें है।
क्योंकि मेरे पास बखरने वाली झूठी शान नहीं है,
अपने सिद्धांतों पर जो ना टिके,मैं ऐसा इंसान नहीं हूं।
मैं अडिग चट्टान हूं।
पत्थर की लकीर की तरह छाप जाऊंगा।
हो सकता है मैं अस्त हो जाऊं,
मगर मैं फिर वापस लौट कर जरुर आऊंगा।
कि बेशक रात बहुत लम्बी हो सकती है,
मगर मैं सुबह की पहली किरण बन जाऊंगा।
सोचना तुम्हें हैं क्योंकि,
मैं अपने पथ पर चलता चला जाऊंगा।
आना तुम्हें है मेरे साथ,
अगर नहीं चले,
मैं बहुत दूर निकल जाऊंगा।
क्योंकि मैं सूरज हूं,
मैं आसमान में चमकता चला जाऊंगा।
मैं आनन्द की उन्माद हूं,
मैं कण-कण में बजता एक मधुर राग हूं।
इसलिए चुनना तुम्हें है,
क्योंकि मैं तो अनन्त और अज्ञात हूं।

