अनुरागी लालिमा कपोलों पर
अनुरागी लालिमा कपोलों पर
अनुरागी लालिमा कपोलों पर
छटा इंद्रधनुषी-सी खिल गई
प्रफुल्लित तरुणी की शायद
कुमारत्व से नयन मिल गई।
दिन हो गये स्वप्निल-स्वप्निल
आकुल बाट जोहती क्षुब्ध रजनी
अंग-प्रत्यंगों में धूप बासंती
नयन पटों पर खिली चाँदनी
निंद्रित उर के धड़कन में
मनभावन नवज्योति जल गई।
जगी मृदुल-मृदुल मादक वेदना
अकेलेपन के आलिंगन में
मधुर – मधुर मुग्धित कल्पना
अरुनारा कमसिन नयन में
हो गई निंदिया वैरागन-सी
चेतना खोई निशा ढल गई।
परवाना पतंगे जैसी अभिलाषाएं
श्वेत-श्याम विहंगों-सी घिरती
अंतहीन अनंत महाशून्य में
पंख फैलाये फिर बिचरती
सशक्त शोभित भुजपाशों की
बाँहों में आस लिये पल गई।