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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Romance

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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Romance

अनुरागी लालिमा कपोलों पर

अनुरागी लालिमा कपोलों पर

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अनुरागी लालिमा कपोलों पर

छटा इंद्रधनुषी-सी खिल गई

प्रफुल्लित तरुणी की शायद

कुमारत्व से नयन मिल गई। 


दिन हो गये स्वप्निल-स्वप्निल

आकुल बाट जोहती क्षुब्ध रजनी

अंग-प्रत्यंगों में धूप बासंती

नयन पटों पर खिली चाँदनी

निंद्रित उर के धड़कन में

मनभावन नवज्योति जल गई। 


जगी मृदुल-मृदुल मादक वेदना

अकेलेपन के आलिंगन में

मधुर – मधुर मुग्धित कल्पना

अरुनारा कमसिन नयन में

हो गई निंदिया वैरागन-सी

चेतना खोई निशा ढल गई। 


परवाना पतंगे जैसी अभिलाषाएं

श्वेत-श्याम विहंगों-सी घिरती

अंतहीन अनंत महाशून्य में

पंख फैलाये फिर बिचरती

सशक्त शोभित भुजपाशों की

बाँहों में आस लिये पल गई। 



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