श्रृंगार रस
श्रृंगार रस
मुझे अपने कलम की स्याही में सुरक्षित कर लो,
मुझे शब्दों की सशक्त श्रृंखला में हीरे सा जड लो..
मुझे कविता का उपनाम दे दो..
मेरी आभा को चित्रित कर लो
मेरा तन कैनवास समझो हर रेशे पर खुद को प्रतिबिम्बित कर दो..
मेरी त्वचा पर अपनी हर अदा को वर्णित करो,
मेरे लब को दवात समझो दो पंखुडि से सारी शबनम चुराकर
इन सारी क्रिया को कहानी का रुप दो...
अपने अहसासों में टैगोर की गीतांजलि और कालिदास की मेघदूतम सी
अभिव्यंजना भर कर मुझे सर्वोत्कृष्ट कर दो..
अपनी असंख्य कल्पनाओं में मुझे स्थापित करो,
फिर जो जन्म ले तुम्हारे दिमाग में मनोरचना उसे मेरी आँखों में परिवर्तित करो..
मैं जन्म लेना चाहती हूँ तुम्हारी रूह की कोख से मुझे प्रदर्शित करो,
विश्व देखें मुझे तुम्हारे भीतर
मैं तुम्हारे दिल की जीवंत कला बनकर रहना चाहती हूँ
इस जन्म में और अगले कई जन्मों तक..