नयी उभरती लेखक हूँ
मिलते ही नज़रें हम उनसे बेपनाह प्यार कर बैठे, मिलते ही नज़रें हम उनसे बेपनाह प्यार कर बैठे,
कहाँ भाती है कोई शै मुझे जहाँ तुम्हारी परछाई न हो, कैसे काटूँ सावन भीतर बिरहन के हूक कहाँ भाती है कोई शै मुझे जहाँ तुम्हारी परछाई न हो, कैसे काटूँ सावन भीतर बिरह...
उम्र की लौ आहिस्ता-आहिस्ता बुझ रही है। उम्र की लौ आहिस्ता-आहिस्ता बुझ रही है।
घुल रही है मेरी साँसों में तुम्हारे स्पर्श की उष्मा, मैं उबलते पिघल रही हूँ। घुल रही है मेरी साँसों में तुम्हारे स्पर्श की उष्मा, मैं उबलते पिघल रही हूँ।
मानस सागर में लहरे उठती ही नहीं स्वार्थी हो चली दिमाग की गली संकरी होते सिकुड़ चली. मानस सागर में लहरे उठती ही नहीं स्वार्थी हो चली दिमाग की गली संकरी होते सिकुड़ चल...
किसे वक्त है जो पन्ना भी पलटें, दो कवर पृष्ठों के बीच उदास पड़ी है किताबें.. किसे वक्त है जो पन्ना भी पलटें, दो कवर पृष्ठों के बीच उदास पड़ी है किताबें..
बेवजह ख़्वाहिशों को मारकर मन की मिट्टी में दफ़न क्यूँ करें। बेवजह ख़्वाहिशों को मारकर मन की मिट्टी में दफ़न क्यूँ करें।
रानी बन तेरी मैं हल्का सा हक चाहूँ सोचूँगी फिर कभी.. रानी बन तेरी मैं हल्का सा हक चाहूँ सोचूँगी फिर कभी..
मेरी काया तुम्हारी आगोश में ऐसे घिरी जैसे संध्या दिन की बाँहों में पड़ी.. मेरी काया तुम्हारी आगोश में ऐसे घिरी जैसे संध्या दिन की बाँहों में पड़ी..
स्वर्ग की कामना नहीं तुम्हारी आगोश में आँखें मूँदे पड़ी रहूँ। स्वर्ग की कामना नहीं तुम्हारी आगोश में आँखें मूँदे पड़ी रहूँ।