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Bhavna Thaker

Tragedy

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Bhavna Thaker

Tragedy

मोहिनी के मानक

मोहिनी के मानक

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हर स्त्री हर उम्र में मुग्धा ही रहती है,

बशर्ते निरंतर परवाह की नमी माली सिंचता रहे।


कहाँ कृष होती है आरज़ू? बेरुख़ी के बादलों में ढकी सूखती रहती है।


मुरझाने से परहेज है हर नारी को प्रीत है नवयौवन पर, 

झिलमिलाती चाँदनी बनी रहे चाँद जो उसकी पसंद का हो।


मोहिनी के मानक अलग है, हुनरबाज़ कहाँ कोई जो भाँप सकें? 

विस्तृत होते पंख फैलाएँ टुकड़ा भर जो अपनेपन का आसमान मिले।


ताजिंदगी सुंदरी बोसे सी महकती रहे, चुटकी सिंदूर के बदले गर, 

मानदेय में मुग्धा को सीता सा सम्मान मिले।


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