क्या लिखूं
क्या लिखूं
जाड़ों के महीनों की कथा क्या लिखूँ
ठिठुरती रातों की व्यथा क्या लिखूँ
सड़क के किनारे पेड़ों के तले लुढ़के
आंखों के टूटते सपनों के गाथा क्या लिखूँ
इंतज़ाम बहुत कागजों में आवाज़ों में
आती जाती सरकारें, वादों के आगाजों में
पत्तों से टपके ओस और गीली लेदरे में
सिकुड़ी हुई पैरों का संयम क्या लिखूँ
फ़िर भी चार टांगों से दबोच कर दर्दों को
हमदर्द रिश्तों को और बेदर्द सर्दियों को
फ़र्द दर फ़र्द खुलते बदइन्तेजामातों के
बेपर्दगी न लिखूँ तो फ़िर और क्या लिखूँ।।
इंदिरा आवास से ले कर अटल आवास तक
पी.एम. सी एमों के योजनाओं के झलक
दिखता कुछ और दिखाया जाता कुछ
नज़ारा लिखूं या उनकी नज़रिया लिखूँ।।
