क्या पाओगे
क्या पाओगे
यूँ मुझे ठुकरा कर तुम क्या पाओगे
अपनी जमीर से आप फिसल जाओगे।।
मालूम तो है तुम्हें क्या किया क्या न किया
जानते भी हो तुम कब किया , कैसे किया
बनोगे अनजान तो पकड़े ही जाओगे ।।
रात थी घनी जब , रोशनी गायब थी ।
चाँद था न सितारे , मौसम खराब भी
याद आते ही खुद ही सिहर जाओगे ।।
साँसें भी टोकती होगी बहने से पहले,
ज़ुबाँ भी रुकती होगी कहने से पहले,
फिर कहो गैर मुझे कैसे कह पाओगे?
आदतों से समझौता मान लिया होगा,
हालातों के मारा हूँ , जान लिया होगा
मगर जमाने से कैसे जता पाओगे ?
मैं था और रहूंगा भी आस पास तेरे
भले हो ही न पाया , कोई खास तेरे
मगर मेरे होने को कैसे रोक पाओगे?
