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Dr Baman Chandra Dixit

Abstract

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Dr Baman Chandra Dixit

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क्या बताऊँ उन्हें

क्या बताऊँ उन्हें

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उन्हें क्या बताऊँ , मेरा ही कुसूर होगा
वरना क्यों मुझसे ख़फ़ा हुए होते ।।

कुछ करने में कुछ खामियां रही होगी
वरना नाराज ऐसे वो नहीं हुए होते ।।

मिलती रही सहोलियतें जहां अक्सर
रुक जाये तो असर और कैसे होते ।।

जिन उम्मीदों से बंधी साँसें थी कभी
बेवक्त टुट जाने से शायद ऐसे होते ।।

गुनाह उनकी थी उन्हें कहना भी गुनाह
बिन कहे काश वो समझ गए होते ।।

रिश्ता दरमियाँ अब भी बरकरार होती
अगर दरारों को अनदेखा न किए होते ।।

अब तो देर हो गयी मनाने में शायद
वरना अब तक वो शायद मानगये होते ।।

सपनोंके ऐवज में अपनों को रख लो बामन
सपनों से अधिक अजीज अपने ही तो होते ।।


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