मोम से बना इंसान
मोम से बना इंसान
ये हाड़ ,माँस का नहीं
मोम से बना इंसान है
जरा सी चिंता जरा से दुःखों से
ये पिघल रहा सुबह -शाम है
इसकी जिंदगी के अंधेरों को जो दूर करे
इसके पास न ऐसी ज्योति न ऐसा सामान है
अपनी गरीबी अपनी लाचारी से
अपनी तकलीफों, अपनी बीमारी से
अपनी शक्तियों खो रहा सरे- आम है
इसके पास न ऐसी कोई बाती है
जो इसके शरीर रूपी मोम पर लग कर
इसके दुःख रूपी अन्धकार को मिटा सके
ए इंसान
तेरी तुलना में तो एक मोमबत्ती भी महान है
जो स्वयं जल कर
दूसरों को देती प्रकाश का वरदान है
सच में तू हाड़ ,माँस का नहीं
मोम से बना इंसान है
तू अपनी ही इच्छाओं के तपन से
पिघल रहा सुबह -शाम है।
