शाहजहाँ बन आए
शाहजहाँ बन आए
एक ताजमहल कोई मेरे लिए भी बनाए
कोई मेरे लिए भी शाहजहाँ बन कर आए
इस हृदय में भी स्नेह का जलधि उफनता है
इन उफनती लहरों को समेटने कोई गागर तो लाए
जरूरी नहीं की वो ताजमहल संगमरमर का हो
लफ्जों का बने तो भी कुबूल है
पर जरूरी है की उसकी बुनियाद में यादों का समा हो
उसकी दीवारें इच्छा व आकांक्षा के ताने -बाने बुनती हो
और छत विश्वास दिलाती हो
जिसके आँगन में मिलाप के और विलाप के
सुमन खिल आते हो
जिसकी खिड़की इंतजार में बैठे
उस चाँद का दीदार कराती हो
उस ताजमहल को देखने भले ही कोई न आए
पर उसे देखकर हर कोई ये दोहराए
कि मेरे लिए भी कोई ऐसा ही ताजमहल बनाए
कोई मेरे लिए भी शाहजहाँ बन आए।
