एकांत में जब बैठी रहती तुम्हारी यादों में चूर रहती एकांत में जब बैठी रहती तुम्हारी यादों में चूर रहती
तुझको मेरी याद ना आई, हम तुझको पर कैसे भूलें ?? तुझको मेरी याद ना आई, हम तुझको पर कैसे भूलें ??
समाज की अर्थहीन सोच को निरर्थक ही ढोते रहे समाज की अर्थहीन सोच को निरर्थक ही ढोते रहे
बस चल दिया हूँ रास्तो पर तलाशते कुछ निशान में , क्या पहचान है उसकी, क्या होगा रूप उसका बस चल दिया हूँ रास्तो पर तलाशते कुछ निशान में , क्या पहचान है उसकी, क्या होगा...
दे रहा मानव ही मानव को यहाँ हैं तिरस्कार मिल रही मुझ को भी नित नई यहाँ है ठोकर दे रहा मानव ही मानव को यहाँ हैं तिरस्कार मिल रही मुझ को भी नित नई यहाँ ...
इंसान को खोज लेती हैं रूह के बजारों में इंसान को खोज लेती हैं रूह के बजारों में