तुम्हारा घर आँगन महका देंगी, इन्हें धरा पर ला कर तो देखो। तुम्हारा घर आँगन महका देंगी, इन्हें धरा पर ला कर तो देखो।
सोचती हूँ क्यों आदमी दिशाहीन हुआ जा रहा है। सोचती हूँ क्यों आदमी दिशाहीन हुआ जा रहा है।
एकांत में जब बैठी रहती तुम्हारी यादों में चूर रहती एकांत में जब बैठी रहती तुम्हारी यादों में चूर रहती
संसारिक सुख को लें हम भी भोग, क्योंकि संभोग भगाये रोग। संसारिक सुख को लें हम भी भोग, क्योंकि संभोग भगाये रोग।
उस दुखियारी को छोड़ वे महानगर को चले गए वहाँ के चकाचौंध में सब के सब छले गए उस दुखियारी को छोड़ वे महानगर को चले गए वहाँ के चकाचौंध में सब के सब छ...
गालों में उतरकर लाली दे गई। गालों में उतरकर लाली दे गई।