एक पत्र लिखी मगर भेजी नहीं
एक पत्र लिखी मगर भेजी नहीं
पहली दफा जब देखी तुम्हें
तो..
मन में मेरे एक अहसास जगा
तब मैं एक पत्र लिखी
मगर भेजी नहीं..
तुम्हारी उड़ती वो रेशम सी जुल्फ़े
मुझे एक नया ख़्वाब दिखाने पर
मजबूर कर देती
एकांत में जब बैठी रहती तुम्हारी
यादों में चूर रहती
तब उंगलियों से अपनी लटो को
घुमाती हुई
आँखों में तुम्हारा दिलकश चेहरा
उतारकर
एक पत्र लिखी, मगर भेजी नहीं...
तुम्हें देखकर मेरी सांसें बड़ी तेजी से
ऊपर - नीचे होने लगती
बेवजह ही हाथों से मुट्ठी बंध जाती
शर्म से पलकें झुक जाती और गालों
पर बग़ैर श्रृंगार के ही लाली छा जाती
तब मैं इजहार - ए - मोहब्बत की
एक पत्र लिखी, मगर भेजी नहीं...