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Anjali Srivastav

Tragedy

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Anjali Srivastav

Tragedy

बसंत

बसंत

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नयनों में न नींद है

न करी बरसों से उसकी दीद है

तो बोलो......

 कैसा है ये बसंत .....?


तन शुष्क मन शुष्क

मेरा हर रोम - रोम शुष्क

मिया भी पहले जैसी न बौराई है

न उसमें झलके कोई अब तरूड़ाई है


हुआ अपनों का अपनों के

प्रति मन मलिन

तृष्णा, ईर्ष्या, लोभ आदि

के हो गये सब अधीन

तो बोलो....

कैसा है ये बसंत ....?


हर तरफ मची है अफरा - तफरी

लाले पड़े है रोजगार के

आशातीत है सभी गांव व शहरी

हर वो स्त्री अपने ही घर में है नहीं सुरक्षित

बेटी है या घर में बेटी होने वाली है


ये जानकर... एक बेटी को ही दुत्कार,

तिरस्कार, उलाहना द्वारा

ही कर दिया जाता है उसे मुर्क्षित

तो बोलो......

कैसा है ये बसंत.....?


बसंत तो तब है,

जब घर में मिलें सम्मान

न हो मन में कोई भी अभिमान

एक स्त्री को स्त्रीत्व का मिलें पहचान

हर शख्स का हो अपने

सपनों का नित नया उड़ान


छोटी-छोटी खुशियों को

चुनकर होती है

हर हिय में, हर घर में,

हर गली हर बाग में स्नेह अनंत

तब जीवन में झूमकर

आता है ढेरों बसंत...!


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