Khushboo A.

Tragedy

5  

Khushboo A.

Tragedy

कातिल

कातिल

2 mins
952


तेरे लंबे बाल और गुलपोशी के चर्चे हर जगह थे

खुबसूरती बेहद थी तुझमें पर पहरे हर जगह थे

तुझे अभी समझ भी नहीं थी अपनी इस बख्शीश की 

तो क्या ही समझ पाती कितनों ने इसकी तफ़्तीश की

बाबुल तेरा डरता था ऐसे जैसे तू कोई डायन है 

तू रो दिया करती उसका क्यूं तुझपर गुस्सा कायम है 

तू जान नहीं पाई कभी कि तेरा कुसूर क्या था

बाहर निकले तो खाई थी घर पर रहे तो कुआं था 

एक अच्छा दिन देखकर फिर बाबुल ने तुझको ब्याह दिया

फिर वर ने तेरी रूह बांध कर जिस्म को तेरे प्यार दिया 

तू अब बस घरतक सीमित थी तेरे ना अब कोई चर्चे थे

बचपन तो जल्दी खो बैठी अब जवानी के खर्चे थे 

तुझे सुध ही नहीं थी कि तू इक इंद्रधनुष थी

और यहां तू उसके दिए कपड़े लत्ते में ही खुश थी 

कुछ महीने यूं ही बीत गए फिर उन्हे ये एहसास हुआ

तूझे भी वैसा ही करना है जैसा सबके साथ हुआ 

अब ये लगता था उनको कि कब तक तुझको आराम दे

तेरा भी कर्तव्य था कि वंश को एक संतान दे 

फिर तूने उनकी खुशी के लिए अपनी झोली भर ली

तूझे लगा अब शायद हर मंज़िल पार कर ली 

पति,पुत्र, परिवार सब कुछ तो था क्या कमी थी

तू अक्सर सोचा करती थी फिर भी जाने क्या कमी थी 

अब जाकर तूने माना था कि तुझे घुटन महसूस हुई

समय से पहले बड़ी हुई तू बिना खिले मायूस हुई 

पहली बार हिम्मत करके तूने भी अपनी ठान ली

हाय री पगली क्या किया तूने खुदकी ही जान ली 

मैंने एक दर्शक की तरह सबकुछ होते देख लिया

तेरी बातों को ना सुनकर तेरी आवाज को रौंद दिया 

भाई नहीं बन पाया तेरा मैं पुरुषत्व के भ्रम में 

अब चाहे जीतने अश्क पियूँ सब पानी तेरे गम में 

काश तुझे एक मौका देती कि तू कितनी काबिल थी

जलती थी ये दुनिया तुझसे वो ही तेरी कातिल थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy