कातिल
कातिल
तेरे लंबे बाल और गुलपोशी के चर्चे हर जगह थे
खुबसूरती बेहद थी तुझमें पर पहरे हर जगह थे
तुझे अभी समझ भी नहीं थी अपनी इस बख्शीश की
तो क्या ही समझ पाती कितनों ने इसकी तफ़्तीश की
बाबुल तेरा डरता था ऐसे जैसे तू कोई डायन है
तू रो दिया करती उसका क्यूं तुझपर गुस्सा कायम है
तू जान नहीं पाई कभी कि तेरा कुसूर क्या था
बाहर निकले तो खाई थी घर पर रहे तो कुआं था
एक अच्छा दिन देखकर फिर बाबुल ने तुझको ब्याह दिया
फिर वर ने तेरी रूह बांध कर जिस्म को तेरे प्यार दिया
तू अब बस घरतक सीमित थी तेरे ना अब कोई चर्चे थे
बचपन तो जल्दी खो बैठी अब जवानी के खर्चे थे
तुझे सुध ही नहीं थी कि तू इक इंद्रधनुष थी
और यहां तू उसके दिए कपड़े लत्ते में ही खुश थी
कुछ महीने यूं ही बीत गए फिर उन्हे ये एहसास हुआ
तूझे भी वैसा ही करना है जैसा सबके साथ हुआ
अब ये लगता था उनको कि कब तक तुझको आराम दे
तेरा भी कर्तव्य था कि वंश को एक संतान दे
फिर तूने उनकी खुशी के लिए अपनी झोली भर ली
तूझे लगा अब शायद हर मंज़िल पार कर ली
पति,पुत्र, परिवार सब कुछ तो था क्या कमी थी
तू अक्सर सोचा करती थी फिर भी जाने क्या कमी थी
अब जाकर तूने माना था कि तुझे घुटन महसूस हुई
समय से पहले बड़ी हुई तू बिना खिले मायूस हुई
पहली बार हिम्मत करके तूने भी अपनी ठान ली
हाय री पगली क्या किया तूने खुदकी ही जान ली
मैंने एक दर्शक की तरह सबकुछ होते देख लिया
तेरी बातों को ना सुनकर तेरी आवाज को रौंद दिया
भाई नहीं बन पाया तेरा मैं पुरुषत्व के भ्रम में
अब चाहे जीतने अश्क पियूँ सब पानी तेरे गम में
काश तुझे एक मौका देती कि तू कितनी काबिल थी
जलती थी ये दुनिया तुझसे वो ही तेरी कातिल थी।