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Khushboo Avtani

Others

0.2  

Khushboo Avtani

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"जब मैंने पूछा प्यार क्या है?"

"जब मैंने पूछा प्यार क्या है?"

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वो कहता मैं बड़ी व्यावहारिक हूँ

व्यावहारिक से मतलब था उसका कि

मुझे दुनियादारी पता है

और मैं खुद के लिए जीती हूँ

जैसा मन कहे करती हूँ

जो चाहे खाती पिती हूँ ।

आज़ाद तितली, उड़ती पतंग

ना जाने कौन कौन से नाम दिए

क्या कुछ कोमलता भी है ज़हन में?

जानने के लिए ढेरों शेर अंज़ाम दिए

उसे ये भी पता था कि चिकनी चुपड़ी बातें

और तारीफें

मुझे लुभाने के लिए काफ़ी नहीं

क्यूंकि उसकी समझ के हिसाब से

"मैंने दुनिया देखी है"

महसूस की जाने वाली बातें

भी देख-देख कर सीखी है

बेबाक, बिंदास, मुंहफट, नकचड़ी

उसे तो मेरी ये बातें भी बड़ी लुभाती

खुद भी हँस पड़ता वो जब मैं

उसकी भावुकता की हँसी उड़ाती ।

एक दिन उसने पूछ ही लिया

कि तुम्हारी समझ में 'प्यार क्या है?'

मैंने इस बार ना जाने क्यूं

ये प्रश्न ना टाला

समझ तो वो

लेगा ये यक़ीन था मुझे

सो जो कहना था वो कह डाला।

प्यार के बारे में भी मेरा एक बौद्धिक मत था

जो कुछ यूं था कि

"जब किसी दूसरे से उम्मीद लगाने को जी चाहे तो वो प्यार है ।"

उससे नज़रे मिलाये बिना फिर मैंने प्रश्न किया

तुम भी बता दो भोंदू,

तुम्हारी समझ में प्यार क्या है?

मेरा गुमान चकनाचूर होते समय ना लगा

जब उसने कहा

"उम्मीदों को हटा कर जो भी बच जाए

वो प्यार है ।"

ऐसा लगा मानो जवाब ज़बान ने नहीं

आँखों ने दिया

मेरा हाथ पकड़ कर जब उसने इशारा सा किया

वो बहुत खुश था क्यूंकि वो यह नहीं

चाहता था कि दोनों का जवाब एक हो

ना ही झमेले लेना जिसके मतलब अनेक हों

मेरी बेबाकी को उसने

दरअसल मेरा खुलापन समझा,

शायद तभी उसने कुछ अलग आस लगाई

पर ये उम्मीद मेरी उम्मीद से अलग थी

क्यूंकि दुनियादारी तो

मुझे अब तक समझ ना आयी ।


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