नींद
नींद
आज हर दिन की तरह चौंककर
तड़के उठने का जी ना किया
सोती ही रही बेफिक्र,
बजती घड़ी को बंद कर दिया
दफ्तर भी जाना था,
खाना भी पकाना था
निपटाने थे कुछ काम यूं
कि कल का क्या ठिकाना था
फिर बजी घंटी दरवाज़े की,
मैंने दरवाज़ा नहीं खोला,
सुबह के सात बज रहे हैं,
इस समय होगा भी कौन?
बिल्डिंग का दूध वाला भोला
उसने अपना काम कर दिया
मेरे दरवाज़ा ना खोलने पर
दूध का पैकेट दरवाज़े पर रख दिया
मैंने आधी खुली आंख से
फोन उठाकर न्यूज पढ़ा
सेंसेक्स था बढ़ा,
निफ्टी भी खूब चढ़ा
दाम देखकर मेरे शेयर का
एक पल के लिए सांस अटक गई
कुछ देर बेच
ैन सी करवटें लेकर
मेरी आंख दोबारा लग गई
नौ बजे फिर हुई दरवाजे पर दस्तक
मैंने रूआंसा होकर कहा जो भी हो कल आना
कामवाली खुश होकर लौट गई
पर बज रहे फोन से कैसे हो पाता कतराना?
मैंने फोन उठा लिया और कहा,
जी आपको जल्दी है ये बात ठीक है
पर मैं आज ठीक नहीं हूं
नहीं हो पाएगा कोई काम,
इंसान हूं जनाब कोई मशीन तो नहीं हूं।
अब चलने में तभी मज़ा आयेगा
जब रुकना भी मज़ेदार होगा
तो बात कर लूं मन की आज
कल तो मेरा भी हाल इन सब सा होगा
दरअसल वजह नहीं मिल पा रही थी
कई दिनों से खुश होने की
तो सोचा आज बेवजह खुश हो लूं
गर दिल कर रहा सोने को
तो क्यूं ना जी भर के सो लूं ?