वाह रे प्यारा कवियों
वाह रे प्यारा कवियों


निर्माण के गीत गाने वाले
रचनात्मक आन्दोलन चलानेवाले
कविगण चिल्लाये/ चीखे
मंच दहल गया
बोले कवि
ये दिहाड़ी बढ़ाने की मांग लेकर
हडताल कर रहे खेत मजूर
भत्ता – बोनस बढ़ाने की मांग लेकर
हडताल पर आमादा फेक्टरी वर्कर
यानी /वे सब हडताल करने वाले
शहर बंद का आव्हान करने वाले
निर्माण का चक्का जाम करने वाले
देशद्रोही है देश विरोधी है
श्रोताओं में से एक मजदूर
चीते की फुर्ती सा मंच की तरफ लपका
कवि से मुखातिब हुआ
क्यूँ भाया देश कांई/जंगल नदी पहाड होव्हें है
क्यूँ भाया देश कांई
डालमिया सिंघानिया अम्बानी अडानी हो व्हे है
देश कांई संसद, मन्त्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति होव्हे है
देश की तरक्की में कांई मजूर की तरक्की नहीं होव्हे
थू क्यूँ फालतू कालजो बाले है
थू क्यूँ चरतराम भरतराम /की राग में राग मिलावे है
थने कांई टाटाजी रा काकाजी तनखा देव्हे
या अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोश री विदेशी मुद्रा मिले है
वाह रे प्यारा कविया /थू घणओ स्याणों है  
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आ मिलिट्री, पुलिस
जको म्हारा खून माथे पले
पैदा कांई नी करे
न एक दाना न एक यूनिट बिजली
वे देश भक्त और मैं देश द्रोही
वे मजूरों किसानों माथे गोलियां चलावे रो काम करे
किनके इशारे पर ?
जो मेरे वोट से चुने गए हैं
मुझे गोली और उन्हें सलामी
ए कविया /तू बता
इतने सालों में टाटा,बिडला.लालाजी पर
कितनी बार गोली चलाई
उन्होंने की हडताल अपनी मांगों के लिए
बिना हडताल इनकी मांगें कौन पूरी करता है
थारे भेजो भी है /या कोरो रटंतू तोतो है
पण थू क्यूँ ध्यान देवे
थने तो अण मंच माथे लालाजी
हजारों रुपियो रो चारों एक रात में डाले है
इनके गीत गाना बंद कर
अपनी घांटी ने संभाल
क्यूँ गलो फाड-फाड चीखे है
लुगाई ने टाबरों रो ध्यान राख
कवि बापडो/ गरीब घर रो
हडबडायो / घबरायो
पसीने-पसीने वे ग्यो
ने सीधो मंच नीचे उतर ग्यो.