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Bhagirath Parihar

Abstract Classics

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Bhagirath Parihar

Abstract Classics

पाँच तत्व पर कविताएं

पाँच तत्व पर कविताएं

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अग्नि

ऊर्जा के स्रोतों में आदिम

अग्नि

मनुष्य के इतिहास का प्रारंभ बिंदु

इस खोज ने मनुष्य को सुरक्षित किया

भोज्य को भोजन में परिवर्तित करने की

प्रक्रिया तुझसे ही शुरू होती है

अग्नि के प्रकाश ने अँधेरे से लड़ना सिखाया

जंगल के कुछ हिस्सों को जलाकर

कृषि योग्य बनाया

अग्नि हर घर में हर समय रहती प्रज्ज्वलित

ऋषियों की धुणी 

यज्ञ की पवित्र अग्नि में होम करते

हमारे उपजाए अन्न घी का अंश

देवताओं तक पहुँचाने का कार्य भी


तूने किया अग्नि

तुम्हारे हम ऋणी है

तेरी ऊर्जा और प्रकाश ने

आलोकित किया हमारे जीवन को

तेरा अनुसरण कर हमने खोजे ऊर्जा के

अन्य स्रोत.

विनाशकारी होते हुए अग्नि

कितनी कल्याणकारी है !

 

आकाश

स्पेस न होता तो हम

चलते कैसे! 

बोलते, सुनते कैसे !

हमारी देह के सब अंग

कहाँ समाते !


कहाँ होती हमारी सांसें

और कहाँ रहते हमारे गर्भस्थ शिशु ?

कितना आयोजन किया

जगत कल्याण के लिए तूने  

दो प्रेमियों का मिलन

इसी आकाश में संभव है

वे इसीमे सोते और उठते हैं

आकाश है, चाँद तारे है, सूरज है,


है सूर्य की रोशनी, चाँद की चांदनी,

हमारी राहों को आलोकित करती

हवाएं बहती तुझ में और वर्षा बन

बरसती रहती है तप्त धरती पर

यह आकाश ही है

जो हमारी मृत्यु पर हमें

अपने आगोश में ले लेता है 

सब कुछ इसी से उत्पन्न और इसीमें

समा जाता है और

आकाश निरभ्र और निर्मल


अपना वितान ताने

हमे घेरे रहता है 

ये अनंत है इसका कोई सिरा नहीं

ओर-छोर नहीं.

यही एक शाश्वत है सनातन है

सबको अपने में समो लेनेवाला

नीले आकाश का सौन्दर्य है

अनुपम।


 जल  

जीवन की सरिता को सींचता है

जल,

खिल उठता है जीवन जलधार से

तरोताजा कर देता है तन मन को

वृक्षों की जड़ें, जो खोजती जल को मिटटी में

फ़ैल जाती है चारों ओर,

और बूंद बूंद सोख लेती है


देती है जीवन पेड़ को

समंदर की अनंत जलराशि, देती है

असंख्य जीवों को शरण 

भर भर कर लाती है जल

जीवनदायी नदिया 

तब पल्लवित होते है पेड़ और खेत

बस्तियों के बच्चे किलोल करते हैं नदी जल में 

होते हैं प्रफुल्लित


अन्न फल फूल

जल के बिना इनकी कल्पना नहीं कर सकते

कितनी प्रचुरता से दिया है प्रकृति ने जीव जगत को

संजो कर रखो, प्रदूषित होने से इसे बचाओ,

अत्यधिक दोहन जल संकट पैदा कर सकता है 

शुरुआत तो हो चुकी है सचेत हो जाओ

और प्रकृति के इस अनुपम तोहफे को संरक्षित करो.


 माटी (पृथ्वी)

हम कसमें खाते हैं

अपने देश की पवित्र माटी की 

शहीदों की चिताओं से उठाई मुट्ठीभर राख

हमारी रगों में देश के लिए

मर मिटने का जज्बा पैदा करती है

और हरियाले खेतों की माटी देती है अन्न

हमारे जीवन का आधार


इस माटी में ही दफ़न है हमारे पूर्वज

हमारे महापुरुष

हमें भी अंततः 

यह माटी अपनी गोद में 

सदा के लिए समां लेगी.

माटी के फलसफे भी बहुत है


माटी की काया

गार से काची है,

धूल में मिल जासी

जैसे ओस रा मोती

माटी के पुतले इतना गुमान न कर 

बुलबुले जैसी है मनुष्य की हैसियत

अभी था अब नहीं

है और नहीं होने के बीच में

फूला फूला न समाया


इन्द्रधनुष भी अपने में ताना

सब व्यर्थ

माटी का सच

अंतिम सत्य है .


 वायु  

प्राण तत्व है वायु 

सांसों की निरंतर आवाजाही

से जीवन है

जन्म से मृत्य तक 

समुंदर से उठे बादलों को

बहा ले जाती है वायु और

यथास्थान करती है बारिश


मंद मंद शीतल पवन

देह के सारे ताप को हर लेती है 

पूरे विश्व में बहती रहती है पवनें

जो जलवायु की निर्मिती करती है 

हवाओं के संग संग उडनेवाले प्रेमी

हवाओं से बात करते हैं 


हवाओं संग नाचते, गाते झूमते हैं

हवाएं कानो में गुनगुनाती है

सरसराती है हमारे बीच

कभी बन जाती है बवंडर

कभी कभी तूफान बन आती है वायु

विनाशकारी 

तब करते हैं पवन देव से

प्रार्थना।


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