सकारात्मक जीवन
सकारात्मक जीवन
मैं खुश हूं, कि जरूरी वस्तुओं की कीमतें बढ़ती जाती है और फिर भी मैं उन्हें खरीद सकता हूँ महंगी ही सही मिल तो रही है।
मैं खुश हूं, कि हर महीना बिजली, गैस, पेट्रोल, पानी वगैरह का, अच्छा खासा टैक्स देना पड़ता है. यानी ये सब चीजें मेरे पास, मेरे इस्तेमाल में हैं. अगर यह ना होती तो ज़िन्दगी कितनी मुश्किल होती ?
मैं खुश हूं, कि वर्ष दर वर्ष इंकमटेक्स बढ़ता जाता है ताकि मैं सरकारी खर्चे का बंदोवस्त कर सकूँ यानी मेरी इंकम इतनी है कि आराम से जी सकूँ न होती तो मेरा क्या हाल होता! !
मैं खुश हूं, कि आधी आबादी सरकारी राशन पाँच किलो गेहूं पर जिंदा है जबकि मैं घर बैठकर गाजर का हलवा खा सकता हूँ।
मैं खुश हूं, कि इतनी कड़ाके की सर्दी में लोगों के घरों पर बुलडोजर चल रहे है और मैं आठवें माले के अपने घर में महफूज हूँ ।
मैं खुश हूं, कि मैं कश्मीरी नहीं हूँ वरना मुझे पेलिट गन का शिकार होकर अंधा होना पड़ता ।
मैं खुश हूं, कि मैं हिन्दू हूँ वरना मोब लिन्चिंग का शिकार हो जाता और गंभीर घायल होकर अस्पताल में अंतिम साँसे ले रहा होता ।
मैं खुश हूं, कि मैं बुद्धिजीवी होकर भी अरबन नक्सल नहीं हूँ नहीं तो जेल की एकांत सेल में रहकर आधा पागल हो जाता ।
मैं खुश हूं, कि मैं सरकारी पक्ष का सांसद हूँ वरना इडी सीबीआई की रेड पड़ती घंटों पूछताछ होती।
मैं खुश हूं, कि मैं सरकारी सांसद हूँ वरना हत्या और बलात्कार के आरोप में सलाखों के पीछे होता अपने सांसद को बचाना सरकार का परम कर्तव्य है।
मैं खुश हूं, कि मैं क्रांतिकारी कवि नहीं हूँ वरना वर वर राव की तरह जेल में सड़ता और जमानत भी नहीं मिलती।
मैं खुश हूं, कि मैंने अपनी संवेदनशीलता खो कर भी अपने आप को बचाया है इस निजाम में इतना क्या कम है !