अपना दिमाग
अपना दिमाग
उसने उतारा अपना दिमाग
और रख दिया मेज पर।
अपनी लिखी सभी पुस्तकों को रख दिया मेज पर।
फिर कुछ सोचा,
और रख दिया मेज पर सारे संबंधों और उनसे सम्बन्धित तस्वीरों को
और कहा-यहीं पड़े रहो।
फिर अलमारी से अपने तमाम प्रेम पत्र और प्रेम कहानियाँ निकाली
उन्हें भी रख दिया मेज पर।
मेज के चारों ओर नाचता हुआ नृत्य में मगन हो गया
यदा कदा, मेज पर रखी वस्तुएँ उसे परेशान करने लगी।
उसे लगा इन सबसे खाली हो जाना जरूरी है
और जरूरी है विचार, संवेदना, चिन्ता और सम्बन्धों से भी।
तभी शान्ति का सिरा कहीं मिलेगा।
कब तक ढोते रहोगे इन्हें,
रह सकते हो तो सब के साथ मैत्रीपूर्ण रहो
प्रकृति, प्राणी व वस्तु जगत से,
बस इतना ही काफी है / कोई
अपेक्षाएँ, आकांक्षाएं, आशंकाएँ नहीं।
(अदीब जानसेवर की तुर्की कविता से प्रेरित)