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Bhagirath Parihar

Abstract Classics Inspirational

4  

Bhagirath Parihar

Abstract Classics Inspirational

स्वयंभू को संबोधित चार कविताएं

स्वयंभू को संबोधित चार कविताएं

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१ स्वयंभू

पूरी सृष्टि चलाकर भी प्रभु तू

कर्ता नहीं

तो मैं अकिंचन

कर्ता कहाँ से हो गया !


तू ही तो चलाता है मुझे

कर्ता है कहीं, तो तू ही है

कर्ता तू भी कहाँ है

एक विधान है बस

स्वयंभू चलायमान है 


मेरी साँस, ह्रदय की धड़कन

मेरी नसों में दौड़ता रक्त

मस्तिष्क में विचरते विचार

सब तेरे, मेरा मैं कहाँ

बस इतना भर करना


कि ‘मैं’ के पंख कतर देना

‘मैं’ अपनी औकात में रहे

तुझसे बड़ा होने की कोशिश न करे.  


सौन्दर्य

कितना बिखेर रखा है

पहाड़ों पर्वतों में

नदियों के लम्बे कछारों में

जंगलों के विविध वृक्षों में

फूलों के उपवन में

बहते झरनों में


झीलों के शांत लहराते जल में

तू ही तो झांकता है

पक्षियों के कलरव में

नदियों के कलकल बहते नाद में

कडकडाती बिजलियों और घडघडाते बादलों में

रिमझिम फुहारों में


इस अप्रतिम सौन्दर्य से अभिभूत हूँ

अनुग्रहित हूँ ह्रदयतल तक

बरसती रहे तेरी मेहर यूँ ही.  


सत्य

तपस्वियों

ऋषि-मुनियों और ध्यानियों ने

ब्रह्माण्ड से एकात्मता

फिर उसके भी पार

कहीं सत्य को खोजा

और खुद खो गए

एक बूंद सागर में विलीन हो गई


सागर ही सत्य है

चेतना के महासागर में समा गई

व्यैक्तिक्त चेतना 

सत्य तक कई ढंग से पहुंचा जा सकता है

पहुंचना महत्वपूर्ण है, ढंग हो कोई भी

अलग अलग संस्कृतियों में

ढंग अलग अलग रहे हैं

सत्य साक्षात्कार के. 


 शुभ

हर दिन शुभ है

हर घडी शुभ है

चाँद-सितारे,

सूर्य और सौर मंडल

आकाश गंगाएं


ब्लैक होल जिसमें 

सब कुछ, एक क्षण में समा सकता है

जीवन और मृत्यु 

जीवन की विभिन्न अवस्थाएँ

बालपन, किशोर, युवा, अधेड़ और वृद्धावस्था 

सभी तो शुभ है

ये जगत अत्यंत शुभकारी / कल्याणकारी है


जल, वायु, अग्नि, माटी और आकाश

दिन और रात, भोर और संझ्या

खिलते उपवन और लहलहाते खेत

नृत्य में संलग्न स्त्री पुरुष 

जीवन कितना नीरस होता अगर

स्त्री पुरुष में कोई आकर्षण नहीं होता

प्रेम यही से प्रस्फुटित होता है


प्रेम अत्यंत कल्याणकारी है

अशुभ की धारणा मनुष्य की धारणा है

वह अपने अनुकूल और प्रतिकूल को

शुभ अशुभ मानता है

महामारी जल प्लावन प्रलयंकारी तूफान

ब्रह्माण्ड में असंख्य घटनाएँ घटती है


शुभ अशुभ के परे

अपने ही नियमों से संचालित

विपरीत की संगति में ही संगीत है

इसलिए सब शुभ है सब कल्याणकारी है।


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