मैंने मानवता को जिंदा रखा है फिर भी, मैं व्यर्थ के आरोप जहन में लपेटे हूँ। मैंने मानवता को जिंदा रखा है फिर भी, मैं व्यर्थ के आरोप जहन में लपेटे हूँ।
हर घड़ी हर पहर खुद को ढूंढता हूंँ मैं हर अक्श में हर पहर में खुद से पूछता हूंँ मैं। हर घड़ी हर पहर खुद को ढूंढता हूंँ मैं हर अक्श में हर पहर में खुद से पूछता हूं...
गुमनाम ख़यालों की नज़्में बना मैं गुनगुना रहा हूँ , बड़ी अरसों के बाद खुद से गुफ़्तग गुमनाम ख़यालों की नज़्में बना मैं गुनगुना रहा हूँ , बड़ी अरसों के बाद खुद ...
"मैं शहर हूँ मैं गांव से बहुत आगे निकल चुका हूँ , गांव को तो मैं हजार कदम पीछे छो "मैं शहर हूँ मैं गांव से बहुत आगे निकल चुका हूँ , गांव को तो मैं हजा...
बन जाती हूँ । बन जाती हूँ ।
खुश नही हूं... खुश नही हूं...