गर्मी हूं छोड़ रूह तक हे मातृभूमि गुजर चुका पदार्थ विवाह मैं तुम्हारा भार कैसे चुका पाऊँगा| पानी है देश सोचने लगा दिल सर्द पीना जा चुका उतर बिक चुका है मौसम

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