चुपचाप खामोश और वह फिर तत्पर हो जाती है एक और चुभन सहने के लिए। चुपचाप खामोश और वह फिर तत्पर हो जाती है एक और चुभन सहने के लिए।
प्रेम प्राकृतिक है सहज है जैसे आकार में निराकार स्वाभाविक अभ्यास है प्रेम प्राकृतिक है सहज है जैसे आकार में निराकार स्वाभाविक अभ्यास है
सरल तरल और निश्छल होकर देश के लिए अपना फर्ज़ निभाते हैं। सरल तरल और निश्छल होकर देश के लिए अपना फर्ज़ निभाते हैं।
तुम सामने क्या आये नज़र जीवन व्यथा तर्कहीन हो गया। तुम सामने क्या आये नज़र जीवन व्यथा तर्कहीन हो गया।
ऐसा उपहार देंगे हम तुमको, बोलोगे जी शुक्रिया वाह-वाह। ऐसा उपहार देंगे हम तुमको, बोलोगे जी शुक्रिया वाह-वाह।
लिखता है हर एहसास बिना लाग-लपेट के वो आम ज़िन्दगी से रोज़ सवाल चुनता है लिखता है हर एहसास बिना लाग-लपेट के वो आम ज़िन्दगी से रोज़ सवाल चुनता है